झारखंड में चौकीदार भर्ती प्रक्रिया के दौरान लगाए गए सख्त शारीरिक मापदंड ने कई अभ्यर्थियों को चौंका दिया। 15 जनवरी 2025 को आयोजित इस प्रक्रिया में करीब 35-36 अभ्यर्थी दौड़ स्थल पर उपस्थित हुए। भर्ती प्रक्रिया के दौरान उनकी ऊंचाई मापी गई, और जिनकी ऊंचाई कम थी, उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। इसके बाद, शेष अभ्यर्थियों को छह मिनट में 1600 मीटर दौड़ने को कहा गया।
यह मापदंड न केवल सामान्य अभ्यर्थियों के लिए बल्कि दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए भी असंभव सा लगा। इस प्रक्रिया ने कई कानूनी और नैतिक सवाल उठाए हैं। इस लेख में हम इस विवाद के हर पहलू का विश्लेषण करेंगे।

भर्ती प्रक्रिया में उठे सवाल
भर्ती प्रक्रिया में जिस प्रकार से अचानक शारीरिक परीक्षण का नियम लागू किया गया, उसने कई उम्मीदवारों के मन में असंतोष उत्पन्न किया।
- अचानक घोषणा: अभ्यर्थियों को पहले से इस नियम की जानकारी नहीं दी गई थी।
- सख्त मानदंड: 6 मिनट में 1600 मीटर दौड़ने का मापदंड कई लोगों के लिए अव्यावहारिक था।
- दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए चुनौती: इस परीक्षा ने उन उम्मीदवारों के लिए असंभव स्थिति पैदा कर दी जो शारीरिक रूप से सीमित हैं।
दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए अन्याय
दिव्यांग अभ्यर्थियों के अधिकारों की रक्षा के लिए भारत में कई कानून बनाए गए हैं, जैसे कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016। लेकिन इस भर्ती प्रक्रिया में उनकी क्षमताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।
- उनकी योग्यता पर सवाल: लिखित परीक्षा में सफल होने के बावजूद, उन्हें केवल शारीरिक मानदंड के आधार पर बाहर कर दिया गया।
- विशेष प्रावधानों की कमी: दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए कोई वैकल्पिक प्रक्रिया या छूट नहीं दी गई।
1600 मीटर दौड़: क्या यह ज़रूरी था?
चौकीदार के पद के लिए 6 मिनट में 1600 मीटर दौड़ने की आवश्यकता को लेकर कई सवाल उठे हैं। चौकीदार की भूमिका आमतौर पर सतर्कता, अनुशासन और जिम्मेदारी की होती है, न कि उच्च शारीरिक दक्षता की।
- भूमिका और जिम्मेदारी का मेल नहीं: इस तरह का शारीरिक परीक्षण उन भूमिकाओं के लिए अधिक उपयुक्त होता है जो गहन शारीरिक परिश्रम की मांग करती हैं, जैसे पुलिस या सेना।
- अनुचित चयन मानदंड: चौकीदार जैसे पद के लिए यह मानदंड भेदभावपूर्ण और अव्यावहारिक लगता है।
अभ्यर्थियों की प्रतिक्रिया
कई अभ्यर्थियों ने इस प्रक्रिया को अनुचित बताते हुए विरोध किया।
- भावनात्मक और मानसिक प्रभाव: लिखित परीक्षा में पास होने के बाद, ऐसे शारीरिक मानदंड ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
- समान अवसरों की कमी: दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए यह प्रक्रिया असंवेदनशील साबित हुई।
- पारदर्शिता का अभाव: कई अभ्यर्थियों ने कहा कि यदि उन्हें यह जानकारी पहले मिलती, तो वे अपनी तैयारी बेहतर तरीके से कर सकते थे।
कानूनी और नैतिक सवाल
भर्ती प्रक्रिया ने कई कानूनी और नैतिक मुद्दों को जन्म दिया:
- दिव्यांग अधिनियम का उल्लंघन: दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए समावेशी प्रक्रिया की आवश्यकता है, जिसे यहाँ अनदेखा किया गया।
- भेदभाव का मामला: समान अवसर प्रदान करने में विफलता।
- भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता: अचानक और कठोर नियम लागू करना प्रक्रियात्मक न्याय के खिलाफ है।
समस्या के समाधान की दिशा में सुझाव
इस प्रकार की समस्याओं को हल करने के लिए कुछ आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं:
1. भूमिका आधारित शारीरिक मानदंड
चौकीदार जैसी भूमिकाओं के लिए शारीरिक परीक्षणों को यथार्थवादी और भूमिका-विशिष्ट बनाना चाहिए।
- सतर्कता परीक्षण: शारीरिक फिटनेस के बजाय सतर्कता और जिम्मेदारी पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
- लचीलापन: भिन्न क्षमताओं वाले अभ्यर्थियों के लिए वैकल्पिक परीक्षण होना चाहिए।
2. दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए विशेष प्रावधान
दिव्यांग अभ्यर्थियों को शारीरिक परीक्षणों से छूट या उनके लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए।
- वैकल्पिक उपाय: लिखित और मौखिक परीक्षणों को अधिक महत्व दिया जाए।
- समान अवसर: उनकी क्षमताओं के आधार पर निष्पक्ष चयन प्रक्रिया अपनाई जाए।
3. पारदर्शिता सुनिश्चित करना
भर्ती प्रक्रिया की सभी शर्तों और चरणों की जानकारी समय पर प्रदान की जानी चाहिए।
- पूर्व जानकारी: सभी मानदंडों की घोषणा आवेदन प्रक्रिया के समय हो।
- अभ्यर्थियों की तैयारी: उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और तैयारी का समय दिया जाए।
अन्य राज्यों से तुलना
देश के अन्य राज्यों में चौकीदार भर्ती प्रक्रिया में शारीरिक परीक्षण आमतौर पर कम सख्त होते हैं।
- पुलिस भर्ती प्रक्रिया: यह सख्त होती है, लेकिन यह भूमिका की मांग के अनुसार है।
- वन विभाग: वन रक्षकों के लिए शारीरिक मानदंड कठोर हैं, क्योंकि यह काम शारीरिक परिश्रम की मांग करता है।
- चौकीदार की भूमिका: इस भूमिका के लिए ऐसा कोई मिसाल नहीं मिलता कि 6 मिनट में 1600 मीटर दौड़ अनिवार्य हो।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर भी तीव्र प्रतिक्रियाएँ आई हैं।
- #FairRecruitment: अभ्यर्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने निष्पक्ष भर्ती की माँग की।
- #InclusionForAll: समावेशी प्रक्रिया के समर्थन में यह हैशटैग ट्रेंड हुआ।
- प्रदर्शन: अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन करते हुए अपनी माँगें रखीं।
निष्कर्ष: निष्पक्षता और समावेशिता की आवश्यकता
झारखंड में चौकीदार भर्ती प्रक्रिया ने उन खामियों को उजागर किया है, जो पारदर्शिता, निष्पक्षता और समावेशिता की कमी के कारण पैदा हुईं। यह आवश्यक है कि अधिकारी इस प्रक्रिया की समीक्षा करें और इसे अधिक समावेशी और भूमिका-उन्मुख बनाएं।
Recruitment should not only test the physical or intellectual capabilities of candidates but also ensure that everyone, irrespective of their physical abilities, gets an equal opportunity. समावेशी नीतियों के बिना, ऐसे विवाद भविष्य में भी उत्पन्न होते रहेंगे।
यह समय है कि भर्ती प्रक्रियाओं में सुधार किया जाए ताकि यह निष्पक्षता और समानता के आदर्शों को सही मायनों में दर्शा सके।